क्या कहूँ कि लिख बैठा हूँ
फिर लेखनी में मिट बैठा हूँ
क्या कहूँ कि लिख बैठा हूँ
लिख बैठा कि उदास हुआ हूँ
कब से लेखनी से दूर रहा हूँ
दौड़ रहा हूँ, भाग रहा हूँ,
अपने से बोलूं, अपनी ही सुनूँ
कम ही ऐसा समय पाया हूँ
लेकिन अबके न रह पाया हूँ
क्या कहूँ कि लिख बैठा हूँ
बिसरा बैठा हूँ कोयल कि कू-कू
जंगल कि खुसबू, नदी कि सों-सों
दूर हिमालय का श्वेताम्बर मुकुट
भोर-सांझ चमकते मेघों का झुरमुट
उकसा रहा ये समय का चिरकुट
कम कहता पर कह बैठा हूँ
क्या कहूँ कि लिख बैठा हूँ
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
रविवार, 28 दिसंबर 2008
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
सूने - सूने दिन ये रैना,
सूना मन का हर इक कोना,
तुम विमुख हुए जो प्रिय,
मन का हर तार है सूना,
मन वीणा झंकाओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
सूना मन का हर इक कोना,
तुम विमुख हुए जो प्रिय,
मन का हर तार है सूना,
मन वीणा झंकाओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
नीरस हुआ मधुकर का गुंजन,
निर्गंध हो गई मलय पवन,
तपन कर रहा है अब चंदन,
पतझड़ ले आया निर्मोही हेमंत,
जीवन में बसंत ले आओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
घंटी का घुनकना
घंटी का घुनकना
धड़कनें बहकना,
मुखड़े की लालिमा,
कि सुनते हैं उनसे बात हुई है …
इन पत्तों का रंग हरा तो नही है .
सुनहरा लगे है ..
गालन का रंग गुलाबी तो नही था ..
कहीं से चुरा लगे है ..
दो टूक बतियों से मन भरा तो नही है
मन भरभरा लगे है ……
फ़िर से .
घंटी का घुनकना ..
अँखियों का चहकना ..
ओठों का थिरकना
कि सुनते हैं फ़िर कुछ बात हुई है
ये क्या दिवा सपने और वो कंचनपुर
कंचन झुमके
कंचन बाली
कंचन नथुनी
कंचन हरेवा
कंचनपुर के ये कंचन नुपुर
भ्रम से ..
घंटी का घुनकना ..
नहीं-रे , ये तो कंगना
सांसों का महकना
के सुनते हैं उनसे बात हुई है
धड़कनें बहकना,
मुखड़े की लालिमा,
कि सुनते हैं उनसे बात हुई है …
इन पत्तों का रंग हरा तो नही है .
सुनहरा लगे है ..
गालन का रंग गुलाबी तो नही था ..
कहीं से चुरा लगे है ..
दो टूक बतियों से मन भरा तो नही है
मन भरभरा लगे है ……
फ़िर से .
घंटी का घुनकना ..
अँखियों का चहकना ..
ओठों का थिरकना
कि सुनते हैं फ़िर कुछ बात हुई है
ये क्या दिवा सपने और वो कंचनपुर
कंचन झुमके
कंचन बाली
कंचन नथुनी
कंचन हरेवा
कंचनपुर के ये कंचन नुपुर
भ्रम से ..
घंटी का घुनकना ..
नहीं-रे , ये तो कंगना
सांसों का महकना
के सुनते हैं उनसे बात हुई है
मंगलवार, 2 सितंबर 2008
अंतर्द्वंद्व भाग-१ : आओ हंस्फुट माहौल बनायें
आओ हंस्फुट माहौल बनाए
कुछ बेतुकी बातें बतियाये
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ!!
सुनते हैं, कहीं पहाड़ टूटा है,
किसी शहर में बम फूटा है,
किसी का संसार लूटा है,
किसी का कोई प्रिय रूठा है!
बे! तुम काहे फ़ैंटम् बनते हो,
दो प्याले मधुरस सढ़काएं,
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
देश में आफत आई है,
धर्म इमान सबकुछ बिक्री है,
धन की तेज़ चली चक्री है ,
गरीब की सुध की किसे पड़ी है!
सोचने का काम अम्रीका को दे दो
चलो उसके लिए भी जण-मण गायें
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
मासूम बचपन कुली बना है,
अल्हड जवानी मुरझा रही है,
दुर्शिक्षा से बृद्धि रुकी है,
क्रांति की मशाल बुझी है !
अरे! अभी अपना समय नही है
मशाल नही अभी सिगरेट सुलगाएं
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
अबे सुनो! ज्यादा सोचते हो,
कहाँ फालतू चक्कर पड़ते हो,
क्रांति की बातें करते हो ,
कहीं, लोग कहें सटक गए हो !
इससे पहले अब चुप हो जाओ
चलो 'मन'! देर भयी अब सो जायें
कुछ बेतुकी बातें बतियाये
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ!!
सुनते हैं, कहीं पहाड़ टूटा है,
किसी शहर में बम फूटा है,
किसी का संसार लूटा है,
किसी का कोई प्रिय रूठा है!
बे! तुम काहे फ़ैंटम् बनते हो,
दो प्याले मधुरस सढ़काएं,
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
देश में आफत आई है,
धर्म इमान सबकुछ बिक्री है,
धन की तेज़ चली चक्री है ,
गरीब की सुध की किसे पड़ी है!
सोचने का काम अम्रीका को दे दो
चलो उसके लिए भी जण-मण गायें
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
मासूम बचपन कुली बना है,
अल्हड जवानी मुरझा रही है,
दुर्शिक्षा से बृद्धि रुकी है,
क्रांति की मशाल बुझी है !
अरे! अभी अपना समय नही है
मशाल नही अभी सिगरेट सुलगाएं
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!
अबे सुनो! ज्यादा सोचते हो,
कहाँ फालतू चक्कर पड़ते हो,
क्रांति की बातें करते हो ,
कहीं, लोग कहें सटक गए हो !
इससे पहले अब चुप हो जाओ
चलो 'मन'! देर भयी अब सो जायें
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