मंगलवार, 2 सितंबर 2008

अंतर्द्वंद्व भाग-१ : आओ हंस्फुट माहौल बनायें

आओ हंस्फुट माहौल बनाए
कुछ बेतुकी बातें बतियाये
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ!!

सुनते हैं, कहीं पहाड़ टूटा है,
किसी शहर में बम फूटा है,
किसी का संसार लूटा है,
किसी का कोई प्रिय रूठा है!

बे! तुम काहे फ़ैंटम् बनते हो,
दो प्याले मधुरस सढ़काएं,
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!

देश में आफत आई है,
धर्म इमान सबकुछ बिक्री है,
धन की तेज़ चली चक्री है ,
गरीब की सुध की किसे पड़ी है!

सोचने का काम अम्रीका को दे दो
चलो उसके लिए भी जण-मण गायें
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!

मासूम बचपन कुली बना है,
अल्हड जवानी मुरझा रही है,
दुर्शिक्षा से बृद्धि रुकी है,
क्रांति की मशाल बुझी है !

अरे! अभी अपना समय नही है
मशाल नही अभी सिगरेट सुलगाएं
आओ हंस्फुट माहौल बनाएँ !!

अबे सुनो! ज्यादा सोचते हो,
कहाँ फालतू चक्कर पड़ते हो,
क्रांति की बातें करते हो ,
कहीं, लोग कहें सटक गए हो !

इससे पहले अब चुप हो जाओ
चलो 'मन'! देर भयी अब सो जायें