शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

घंटी का घुनकना

घंटी का घुनकना
धड़कनें बहकना,
मुखड़े की लालिमा,
कि सुनते हैं उनसे बात हुई है …

इन पत्तों का रंग हरा तो नही है .
सुनहरा लगे है ..
गालन का रंग गुलाबी तो नही था ..
कहीं से चुरा लगे है ..
दो टूक बतियों से मन भरा तो नही है
मन भरभरा लगे है ……

फ़िर से .
घंटी का घुनकना ..
अँखियों का चहकना ..
ओठों का थिरकना
कि सुनते हैं फ़िर कुछ बात हुई है

ये क्या दिवा सपने और वो कंचनपुर
कंचन झुमके
कंचन बाली
कंचन नथुनी
कंचन हरेवा
कंचनपुर के ये कंचन नुपुर

भ्रम से ..
घंटी का घुनकना ..
नहीं-रे , ये तो कंगना
सांसों का महकना
के सुनते हैं उनसे बात हुई है

2 टिप्‍पणियां:

v08i ने कहा…

wah pandit jim mazaa aa gaya. aap aise hi likhte raho aur hum padhte rahen.

बेनामी ने कहा…

are pandit ji, kanha tum software professional k chakkar mai pad gaye, tum so writing ko hi pakado, tahalka kar do ge.