रविवार, 28 दिसंबर 2008

फ़िर आंखों से बोलो ना!!!

सूने - सूने दिन ये रैना,

सूना मन का हर इक कोना,

तुम विमुख हुए जो प्रिय,

मन का हर तार है सूना,

मन वीणा झंकाओ ना,

सुन तो ऐ मनमीत!

फ़िर आंखों से बोलो ना!!!




नीरस हुआ मधुकर का गुंजन,

निर्गंध हो गई मलय पवन,

तपन कर रहा है अब चंदन,

पतझड़ ले आया निर्मोही हेमंत,

जीवन में बसंत ले आओ ना,

सुन तो ऐ मनमीत!

फ़िर आंखों से बोलो ना!!!

4 टिप्‍पणियां:

Jyotsna ने कहा…

Awesome !

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर |
वैसे बसंत अब कुछ ही दिनों की दूरी पर है ;)

Bhuwanesh ने कहा…

मान गए गुरूजी ..किसी की आँखों में कुछ तो कमाल है जो ...आपको इतना मजबूर कर दिया है..सलाम है उनको और आपको...

Yogesh Varma (Yo!) ने कहा…

उम्दा रचना ... ताजा ख़याल और तीव्र भाव ... बधाई