सूने - सूने दिन ये रैना,
सूना मन का हर इक कोना,
तुम विमुख हुए जो प्रिय,
मन का हर तार है सूना,
मन वीणा झंकाओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
सूना मन का हर इक कोना,
तुम विमुख हुए जो प्रिय,
मन का हर तार है सूना,
मन वीणा झंकाओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
नीरस हुआ मधुकर का गुंजन,
निर्गंध हो गई मलय पवन,
तपन कर रहा है अब चंदन,
पतझड़ ले आया निर्मोही हेमंत,
जीवन में बसंत ले आओ ना,
सुन तो ऐ मनमीत!
फ़िर आंखों से बोलो ना!!!
4 टिप्पणियां:
Awesome !
बहुत सुंदर |
वैसे बसंत अब कुछ ही दिनों की दूरी पर है ;)
मान गए गुरूजी ..किसी की आँखों में कुछ तो कमाल है जो ...आपको इतना मजबूर कर दिया है..सलाम है उनको और आपको...
उम्दा रचना ... ताजा ख़याल और तीव्र भाव ... बधाई
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